Tuesday, January 17, 2012

भूमिहार-ब्राह्मण वंश की उत्पत्ति की कथा


वैसे तो भूमिहार वंश की उत्पत्ति के सबन्ध के इतिहास को प्राचीन किंवदन्तियों के आधार पर अनेक विद्वानों ने लिपिबद्ध करने का प्रयास किया है। ऎसा माना जाता है कि भगवान परशुराम जी ने क्षत्रियों को पराजित कर जो ज़मीन थी, से ब्राह्मणों को दे दिया, जिसके बाद ब्राह्मणों ने पूजा-पाठ का परम्परागत पेशा छोड़ मींदारी शुरू कर दी और बाद में युद्ध में प्रवीनता भी हासिल कर ली थी। ये ब्राह्मण ही भूमिहार ब्राह्म कहलाये। और तभी से परशुराम जी को भूमिहारो का जनक और भूमिहार-ब्राह्मण वंश का प्रथम सदस्य माना जाता है।

5 comments:

  1. असली भूमिहार शेरपुर वाले जो की संकरवार वंश के आर्य है। पूरा गाज़ीपुर शेरपुर के भूमिहारो से थर थर कापता है। गाज़ीपुर में उन्ही सभी का तो चलता है। शेरे पूर्वान्चर की जन्म भूमि है

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  2. संकरवारो वंश ने 7 मार्च 1527 खनवा के युध्य में संकरवारो ने सर्वखाप-पंचायतों की तरह से राणा सांगा की सहायता नहीं किये बल्कि ये तो राणा सांगा के राज्य के हिस्से थे। बाबर ने युध्य के बाद संकरवारो के पूरी बस्सी को न सिर्फ उजाड़े बल्कि उसी स्थान पर अपना पड़ाव भी डाल लिये। बाबर को पता था की ये लोग मेरे गुलामी कबूल नहीं करे गे और मेरे खिलाफ बार- बार उग्र बिरोध करे गे। और उसका अनुमान भी सही निकला 1928 में मदारपुर में भूमिहार ब्रामणो ने बाबर को धेर लिया इतिहास का सबसे बड़ा रक्त पात इस युध्य में हुआ मगर इतिहासकारो ने चुप्पी साध लिये। 1530 में काम देव मिश्र और धाम देव मिश्र ने सकराडीह को आबाद किया. 27 जून 1539 ई.कर्मनाशा नदी के किनारे चौसा नामक स्थान बाबर और शेरशाह सूरी के मध्य हुआ। इस युध्य में भी संकरवारो ने शेरशाह सूरी का साथ दिये। जब शेरपुर के उतर काधी से बाबर की सेना जा रही थी उस समय शेरपुर के लोग लाठी भाले से साथ खड़े थे इन लोगो को देख कर बाबर की सेना को लूटने का भय होने लगा की कहि राह में सेना के समानो को लूट न ले। यही नहीं मुगलो ने संकरवारो के साथ समझौतों का बार बार प्रयत्न किये है लेकिन संकरवारो ने मुगलो की मांगे ठुकराते रहे है। इन तमाम मुश्किलों के वाद भी शेरपुर का नीव डालने में सफलता पाये थे। शेरपुर गाँव चाचा बतीजो का संबन्धी की उपज है चाचा भतीजे की जोड़ी मानसिंह राय परशुराम राय जुझारू और निडर थी। परशुराम राय के पिता सीरसिंह राय कुतलू से युध्य मे शहीद हो गये थे। कुतलू का युध्य उसकी क्रूर व निरदई बेवहरो के कारण हुआ था। मानसिंह राय परशुराम राय के कारण संकरवारो के नाम,यस ,कृति नदी की बाढ़ की तरह फैलने लगीं और संकरवार की शक्ति दूज के चॉँद से बढ़कर पूरनमासी का चॉँद हो गई। मानसिंह राय परशुराम राय यह दोनों वीर कभी चैन से न बैठते थे। रणक्षेत्र में अपने हाथ का जौहर दिखाने की उन्हें धुन थी। सुख-सेज पर उन्हें नींद न आती थी। और वह जमाना भी ऐसा ही बेचैनियों से भरा हुआ था। उस जमाने में चैन से बैठना दुनिया के परदे से मिट जाना था। बात-बात पर तलवांरें चलतीं और खून की नदियॉँ बहती थीं। यहॉँ तक कि शादियाँ भी खूनी लड़ाइयों जैसी हो गई थीं। लड़की पैदा हुई और शामत आ गई। हजारों सिपाहियों, सरदारों और सम्बन्धियों की जानें दहेज में देनी पड़ती थीं । लेकिन संकरवारो ने कभी अपने शादी के लिये ,किसी का डोरा के लिये कही किसी के साथ युध्य नहीं किये और ना ही किसी का धन लूटने के लिये कोई युध्य किये। ये तो वोरो की आर्य जाती है, जो अपनी मान मर्यादा देश की एकता अखण्ड़ता एवं धर्म रक्षा के मर मिटने को तैयार रहते है। और इसी लिये मर मिटे भी है। और ये भी सही है की हमेशा राज्य के सीमा पर ही रहते थे। जहा भी सबसे मुश्किल और खतरनाक राज्य की सिमा होती थी जहा से दुश्मनो का भय सदैव रहता थे राजा लोग वही इन लोगो को रहने की बेवस्था करते थे चाहे वो फतेहपुर सिकड़ी हो या सकरडीह। पृथ्वीराज चौहान के परम मित्र संजम भी महोबा की इसी लड़ाई में मारे गए थे जिनको आल्हा उदल के सेनापति बलभद्र तिवारी जो कान्यकुब्ज और कश्यप गोत्र के थे उनके द्वारा मारा गया था l वह शताब्दी वीरों की सदी कही जा सकती है।कुतलू के युध्य में सीरसिंह राय के मरने के बाद लोगो में सलाह मशिवरा होने लगा लोग तरह तरह की बाते करने लगे। माना गया की झाड़ू से कही आधी नहीं रूकती है आगे का कार्य करिये । ,कुतलू को मरने का जिम्मा मानसिंह राय को सौंपा गया और परशुराम राय को बाहर का भार सौंपा गया । एक सोची समझी रणनीति थी और यही हुआ . कुतलू ने शेर व पहलवान पाले थे और उसको लगा की मै तो पूरी तरह से सुरक्षित हु लेकिन परशुराम राय ने दोनों शेरो व पहलवान को उलझाकर मार डाले और उसी समय मानसिंह राय कुतलू को अन्दर जाकर उनकी पत्नी व परिवार के सामने युध्य में मार डाले ,आप के वीर पूर्वज पशुराम राय की मेहनत और लगन का फल एक फलता फूलता गाँव के रूप में दीखता है। जब भी जरूरत पड़ती है आप का परिवार सदैव गाँव के लिये सब कुछ नौछावर करने पर तातपर रहता है। vishram rai आप को शेरपुर के आज के फ्रंटियर गांधीवादी समाज सेवक के रूप में लोग देखते है।

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  3. Bhumihar ke utpati ka pura detail batane ki kripa kare

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    1. ब्राह्मण समाज का ऐतिहासिक अनुशीलन, काशी की पांडित्य परम्परा, ब्राह्मण मीमांसा, ब्राह्मण जाति विवेक, जाति भास्कर, जाति विलास पढ लीजिएगा ।पता चल जायेगा।

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  4. Ek aise bhumihar ka name batayen jo bina dahej ya lenden ke apni kanya ko khushi2 bidai kiya hoe. Shirf bhumihar ka dambh bharne se bhumihar nahi baniya ke catogri me sabhi hindustani bhumihar hain.

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