Wednesday, May 8, 2013

Prashuram Mandir Hyderabad

prashuram mandir, hyderabad

Prashuram Mandir Hyderabad


परशुराम मंदिर, हैदराबाद का प्राण प्रतिष्ठा समारोह तेरह मई को

धर्मानुरागी सज्जनो,
सप्रेम हरिस्मरण।
परमप्रभु परमात्मा की असीम-अहैतुकी अनुकम्पा एवम् प्रेरणा तथा भक्तजनों के प्रबल पुण्य के बल से मां भाग्य लक्ष्मी की नगरी हैदराबाद के जगतगिरीगुट्टा में भगवान श्रीपरशुराम का दिव्य मंदिर अपने भव्य स्वरुप में प्रकट हुआ है। पूरे दक्षिण भारत में भगवान परशुराम का ये दूसरा और आंध्रप्रदेश का पहला मंदिर है। उसी दिव्य मंदिर का प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव वैशाख शुक्ल तृतीया ( अक्षय तृतीया-श्रीपरशुराम-जयंती) तदनुसार दिनांक 13-05-2013, दिन सोमवार को प्रातः 10 बजकर 26 मिनट मृगशिरा नक्षत्रयुक्त कर्कट लग्न सुमुहूर्त में होना सुनिश्चित हुआ है। प्राण-प्रतिष्ठा की संपूर्ण लोकमंगलपरक प्रवृत्तियों का समायोजन काशी के श्रीमठ पीठाधीश्वर और श्रीसम्प्रदायाचार्य जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्यजी महाराज के सान्निध्य में सम्पन्न होगा। समस्त वैदिक विधानों का संचालन दक्षिण भारत के सुख्यात वैदिक विद्वानों एवम् याज्ञिकों के द्वारा संपादित होगा। आप अपने सभी इष्ट-मित्र और बंधु-बांधवों सहित पधारकर भगवान परशुराम की कृपा का भाजन बनें एवम् जीवन को धन्य करें।
विनयावनत्
रामगोपाल चौधरी
अध्यक्ष, ब्रह्मर्षि सेवा समाज, हैदराबाद संपर्क- 09391018491
त्रिदिवसीय महोत्सव की लोकमंगलपरक प्रवृत्तियां
दिनांक-11-05-2013 (शनिवार)
प्रातः 7 बजे से-शांतिपाठ,गणपति पूजा, पुण्यावाचन,मातृका पूजन,जादिसमाराधना अंकुरारोपण, पंचगव्य मेलनम्, यज्ञशाला प्रवेशम्, ब्रह्मादि- वास्तु-क्षेत्रपाल-योगिनी-नवग्रहमंडल स्थापना, अग्निप्रतिष्ठा, गणपति होम,आवाहित होम, मूलमंत्र होम,जलाधिवास,अधिवासांग होम आरति एवम् प्रसाद
संध्या 7 बजे-भजन संध्या सह जगद्गुरु रामानंदाचार्य जी का प्रवचन
दिनांक-12-05-2013 (रविवार)
आवाहित देवता पूजा,आवाहित देवता होम, धन्याधिवास, अधिष्ठायांग होम, रुद्र होम,विष्णुहोम, मूलमंत्र होम, शय्याधिवास,पुष्पाधिवास, आरती एवम् प्रसाद,संध्या 7 बजे- भजन संध्या सह आचार्यश्री का प्रवचन
13-05-2013 (सोमवार)
प्रातः 7 बजे से-आवाहित देवता पूजा,गर्तन्यास,कलान्यास, नेत्रोन्मीलन,प्रातः 10 बजकर 26 मिनट- यंत्र मूर्ति प्राण- प्रतिष्ठा, महाकुंभम् अभिषेक, पूजा-आरति और आचार्य-ब्राह्मण द्वारा भक्तों-अतिथियों का अभिनंदन, मुख्य अतिथि का संबोधन एवम् जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज का आशीर्वचन। महाभंडारा के साथ यज्ञ की पूर्णाहुति
यज्ञाचार्य- यज्ञरत्न आचार्य के. .चारी, पुराना रामालयम्, नल्लकुंटा,हैदराबाद

स्वामी श्रीरामनरेशाचार्यजी महाराज पांच दिवसीय हैदराबाद दौरा आज से

रामानंद संप्रदाय के प्रधान आचार्य और सगुण एवम् निर्गुण रामभक्ति परंपरा के मूल आचार्यपीठ श्रीमठ, काशी के वर्तमान पीठाधीश्वर जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्यजी महाराज पांच दिवसीय प्रवास पर आज हैदराबाद पहुंच रहे हैं। शाम सवा पांच बजे वे बैंगलोर से वायुमार्ग द्वारा हैदराबाद के शमशाबाद स्थित राजीव गांधी अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचेंगे। हैदराबाद के भक्तगण और ब्रह्मर्षि समाज के पदाधिकारी बड़ी संख्या में उनकी आगवानी कर उन्हें कुक्कटपल्ली ले जाएंगे, जहां अगले पांच दिनों तक उनका आवास रहेगा। ब्रह्मर्षि सेवा समाज, हैदराबाद के अध्यक्ष श्रीराम गोपाल चौधरी का आवास इस दौरान आचार्यश्री का अस्थायी आवास होगा।
महाराजश्री हैदराबाद के जगतगिरीगुट्टा में बने भगवान परशुराम के नवनिर्मित मंदिर के तीन दिवसीय प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव के मुख्य अतिथि हैं। अक्षय तृतीया यानि परशुराम जयंती के मौके पर मंदिर का प्राण-प्रतिष्ठा होना सुनिश्चित हुआ है। वैसे धार्मिक कार्यक्रमों की शुरुआत 11 मई को प्रातः सात बजे गणपति पूजा और देवताओं के आवाहन  के साथ हो जाएगी। अक्षय तृतीया के दिन 13 मई को प्रातः 10 बजकर 26 मिनट पर प्राण-प्रतिष्ठा का मुहुर्त्त है। इसके निमित्त मंदिर परिसर में यज्ञ मंडप का निर्माण हो चुका है। महाराजश्री के सान्निध्य में होने वाली समस्त मंगलप्रवृत्तियों का संचालन हैदराबाद के नल्लकुंटा स्थित प्राचीन रामालयम के प्रधान यज्ञरत्न आचार्य के.ए.चारी करेंगे। आचार्यश्री के हैदराबाद प्रवास के दौरान कई तरह के अन्य समारोह भी आयोजित हैं, जहां भक्त और श्रद्धालु उनके दर्शन-पूजन और आशीर्वचन के लाभ उठा सकेंगे। रामानंदी वैष्णव समाज के संत-महात्माओं में भी अपने आचार्य के आगमन को लेकर खासा उत्साह है।

Friday, August 31, 2012

परशुराम मंदिर में वार्षिक अष्टयाम सम्पन्न




हैदराबाद, 16 अगस्त। शहर के जगदगिरीगुट्टा स्थित भगवान परशुराम के मंदिर में वार्षिक अष्टयाम का समापन सामूहिक हवन और भंडारे के साथ हुआ। ब्रह्मर्षि सेवा समाज के इस आयोजन में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया।
ब्रह्मर्षि सेवा समाज, हैदराबाद के अध्यक्ष रामगोपाल चौधरी ने यहां जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि भगवान परशुराम के मंदिर में बिगत वर्षों की भांति इस साल भी पूरे श्रद्धा और उत्साह के साथ पूर्ण विधि-विधान से 24 घंटे का अखंड हरिनाम संकीर्तन का आयोजन किया गया। 24 घंटे तक चले अखंड हरिनाम संकीर्तन के दौरान हजारों श्रद्धालुओं ने पूर्ण भक्ति-भाव और तन्मयता से धार्मिक अनुष्ठानों में अपनी सहभागिता निभाई। समापन के दिन आयोजित विशाल भंडारे में समाज के अग्रजनों के साथ ही जगदगिरी गुट्टा के स्थानीय नागरिकों ने तन- मन- धन से सहभागिता निभाई । अध्यक्ष श्री चौधरी ने अष्टयाम को सफलता पूर्वक पूर्ण होने पर सभी का आभार जताया। उन्होंने धर्मानुरागी सज्जन शक्ति से अपील की कि शहर के पहले और एकलौते परशुराम मंदिर को अद्वितीय स्वरुप देने के कार्य में अपनी सहभागिता निभाकर आपार यश का भागी बनें। मंदिर प्रबंधन से जुड़े वरीय सदस्यों सर्वश्री श्यामनंदन सिंह , रामगोपाल चौधरी, आई पी सिंह , शत्रुध्न प्रसाद सिंह , आर. एस. शर्मा, हेमंत सिंह, ब्रजेश सिंह, ललन कुमार, अशोक शर्मा आदि ने समस्त धार्मिक प्रवृतियों को सम्पन्न कराने में महती भूमिका निभाई।


Wednesday, February 22, 2012

स्वामी सहजानंद सरस्वती की जयंती मनी













हैदराबाद, 20 फरवरी। भारतीय किसान आंदोलन के प्रणेता स्वामी सहजानंद सरस्वती की जयंती धूमधाम से शहर के जगतगिरीगुट्टा स्थित परशुराम मंदिर में मनायी गयी। इस मौके पर स्वामी सहजानंद के कार्यो और जीवन संघर्ष की व्यापक रुप में चर्चा हुई। ब्रह्मर्षि सेवा समाज की ओर से आयोजित समारोह के मुख्य अतिथि थे स्वामी के सहयोगी रहे जीवछ सिंह। ब्रह्मर्षि सेवा संघ, हैदराबाद के अध्यक्ष रामगोपाल चौधरी की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक समारोह का उद्घाटन समाज के वरिष्ठ सदस्यों सर्वश्री रामजी मिश्रा, सी के सिन्हा, रामगोपाल चौधरी नॆ दीप जलाकर किया। अपने संबोधन में मुख्य अतिथि जीवछ सिंह ने बेगूसराय में स्वामी सहजानंद की नाव कोठी के जमींदार के खिलाफ हुई रैली की चर्चा की। जिसमें स्वामीजी ने इलाके के खेतिहर किसानों और मजदूरों से जमींदार के लठैतों को लाठी से खदेड़ना का आह्वान किया था। उन्होंने सुनाया कि उस जमाने के राहुल सांस्कृत्यायन,राममनोहर लोहिया, आचार्य नरेन्द्रदेव, जयप्रकाश नारायण जैसे सभी बड़े नेता स्वामीजी के आंदोलनों में भागीदार होते थे। हैदराबाद में पहली बार आयोजित समारोह से उत्साहित अध्यक्ष रामगोपाल चौधरी ने घोषणा की कि अब स्वामीजी की जयंती और पुण्यतिथि हर साल बड़े पैमाने पर आयोजित की जाएगी। अतिथियों का स्वागत समाज के अध्यक्ष रामगोपाल चौधरी ने किया जबकी संचालन पुखराज ने किया। इस मौके पर रामजी मिश्रा, सीके सिन्हा,एस एन राय, मनोज शाही, आर एस शर्मा, मानवेन्द्र मिश्रा, मीनाक्षी चौधरी, महिला सेल की प्रमुख आशा मिश्रा,उषा शर्मा,कुसुम लता राय,ब्रजेश कुमार, बीएन राय, पुष्कर कुमार सहित कई लोग मौजूद थे।



Wednesday, January 25, 2012

हमारे संस्कार- विवाह दिवस संस्कार


जैसे जीवन का प्रांरभ जन्म से होता है, वैसे ही परिवार का प्रारंभ विवाह से होता है । श्रेष्ठ परिवार और उस माध्यम से श्रेष्ठ समाज बनाने का शुभ प्रयोग विवाह संस्कार से प्रारंभ होता है । दो शरीर मिलकर एक प्राण होने की साधना इसी दिन से प्रारंभ करते हैं । इसलिए विवाह दिवसोत्सव को भी एक श्रेष्ठ पर्व मानकर उस दिन युग ऋषि द्वारा निर्धारित संस्कार का लाभ लेना चाहिए ।

व्याख्या

जिनके विवाह नहीं हुए उनके संस्कार को सुयोग्य व्यवस्थापकों एवं पुरोहितों द्वारा अत्यन्त प्रभावोत्पादक बनाया जाना चाहिए, पर जिनके हो चुके हैं, उनके सम्बन्ध में 'हो गया सो हो गया' कहकर छुटकारा नहीं पाया जा सकता, उनको यह लाभ पुनः मिलना चाहिए । औंधे-सीधे ढंग से बेगार भुगतने की भगदड़ में उन्हें जो मिल नहीं पाया है, इसके लिए उत्तम-सरल और उपयोगी तरीका विवाह दिवसोत्सव मनाया जाना ही हो सकता है । जिस दिन विवाह हुआ था, हर वर्ष उस दिन एक छोटा उत्सव, समारोह मनाया जाए । मित्र परिजन एकत्रित हों, विवाह का पूरा कर्मकाण्ड तो नहीं, पर उनमें प्रयुक्त होने वाली प्रमुख क्रियाएँ पुनः की जाएँ तथा विवाह के र्कत्तव्य-उत्तरदायित्वों को नये सिरे से पुनः समझाया जाए ।

हर वर्ष इस प्रकार का व्रत धारण, प्रशिक्षण, संकल्प एवं धर्मानुष्ठान किया जाता रहे, तो उससे दोनों को अपने र्कत्तव्य एवं उत्तरदायित्वों को पालने-निबाहने की निश्चय ही अधिक प्रेरणा मिलेगी । उसी दिन दोनों परस्पर विचार-विनिमय करके अपनी-अपनी भूलों को सुधारने तथा एक दूसरे के अधिक समीप आने के उपाय सुझाने में सफलता प्राप्त कर सकते हैं । विवाह दिन की पुरानी आनन्दमयी स्मृति का स्मरण कर पुनः अन्तःकरण को प्रफुल्लित कर सकते हैं । इस प्रकार वह सुनहरा दिन एक दिन के लिए हर साल नस-नाड़ियों में उल्लास भरने के लिए आ सकता है और विवाह र्कत्तव्यों को नये सिरे से निबाहने की प्रेरणा दे सकता है ।
बन्दूकों के लाइसेन्स हर साल बदलने पड़ते हैं, रेडियो का लाइन्सेस हर वर्ष नया मिलता है । मोटरों के लाइसेन्स का भी हर साल नवीनीकरण करना पड़ता है । विवाह के र्कत्तव्यों को ठीक तरह पालने का लेखा-जोखा उपस्थित करने, भूल-चूक को सुधारने और अगले वर्ष सावधानी बरतने के विवाह लाइसेन्स का यदि हर वर्ष नवीनीकरण कराया जाए, तो इससे कुछ हानि नहीं, हर दृष्टि से लाभ ही लाभ है । संसार के अन्य देशों में यह उत्सव सर्वत्र मनाये जाते हैं । अन्तर इतना ही है कि वे केवल खुशी बढ़ाने के मनोरंजन तक ही उसे सीमित रखते हैं, हमें उसे धर्म प्रेरणा से ओत-प्रोत करने वाले धर्मानुष्ठान की तरह नियोजित करना है ।

संकोच-अनावश्यक- इस प्रथा के प्रचलन में एक बड़ी कठिनाई यह है कि हमारे देश में विवाह को, दाम्पत्य जीवन को झिझक-संकोच एवं लज्जा का विषय माना जाने लगा है, उसे लोग छिपाते हैं । दूसरों को देखकर स्त्रियाँ अपने पतियों से घूँघट काढ़ लेती हैं और पति अपनी पत्नी की तरफ से आँखें नीची कर लेते हैं । विवाह के अवसर पर वधू बड़े संकोच के साथ डरती-झिझकती कदम उठाकर आती है, यह अनावश्यक संकोचशीलता निरथर्क है । भाई-भाइयों की तरह पति-पतनी भी दो साथी हैं । विवाह न तो चोरी है, न पाप । दो व्यक्तियों का धमर्पूवर्क द्वैत को अद्वैत में परिणत करने का व्रत-बन्ध ही विवाह अथवा दाम्पत्य संबंध है । अवश्य ही अश्लील चेष्टाएँ अथवा भाव भंगिमाएँ खुले रूप से निषिद्ध मानी जानी चाहिए, पर साथ-साथ बैठने-उठने, बात करने की मानवोचित रीति-नीति में अनावश्यक संकोच न बरता जाए, इसमें न तो कोई समझदारी है, न कोई तुक । इस बेतुकी को यदि हटा दिया जाए, तो इससे मयार्दा का तनिक भी उल्लंघन नहीं होता ।
जब अनेक अवसरों पर पति-पत्नी पास-पास बैठ सकते हैं, कोई हवन आदि धमर्कृत्य कर सकते हैं, साथ-साथ तीर्थयात्रा आदि कर सकते हैं, तो विवाह दिवसोत्सव पर किये जाने वाले साधारण से हवन में किसी को क्यों संकोच होना चाहिए । गायत्री हवन के साथ-साथ चार-पाँच छोटे-छोटे अन्य (विवाह दिवसोत्सव के) विधि-विधान जुडे हुए हैं और प्रवचनों का विषय दाम्पत्य जीवन होता है । इनके अतिरिक्त और कुछ भी बात तो ऐसी नहीं है, जिसके लिए झिझक एवं संकोच किया जाए, विवाह की चर्चा करने पर जैसे वर-वधू सकुचाते हैं, वैसी ही कुछ झिझक विवाह दिवसोत्सव के अवसर पर दिखाई जाती है । इसमें औचित्य तनिक भी नहीं, विचारशील लोगों के लिए इस अकारण की संकोचशीलता को छोड़ने में कुछ अधिक कठिनाई नहीं होनी चाहिए ।

अनेक प्रगतिशीलता दम्पती अपने विवाह दिवस मनाते हैं । कोई दिशा धारा न होने से, छुट्टी, पिननिक, मित्रों की पार्टी, सिनेमा जैसे छुटपुट उपचारों तक ही सीमित रह जाते हैं, ऐसे लोगों को भावनात्मक-धर्म समारोहपूवर्क विवाह दिवसोत्सव मनाने की बात बतलाई-समझाई जाए, तो वे इसे सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं । न्यूनतम खर्च में जीवन में नई दिशा का बोध कराने वाला तथा नये उल्लास का संचार कराने वाला यह संस्कार थोड़े ही प्रयास से लोकप्रिय बनाया जा सकता है ।

नया उल्लास नया आरम्भ- पति-पत्नी को नये वर्ष में नये उल्लास एवं नये आनन्द से परिपूर्ण जीवन बनाने-बिताने की नई प्रेरणा के साथ अपना नया कायर्क्रम बनाना चाहिए । अब तक वैवाहिक जीवन अस्त-व्यस्त रहा हो, तो रहा हो, पर अब अगले वर्ष के लिए यह प्रेरणा लेनी चाहिए । ऐसी योजना बनानी चाहिए कि वह अधिकाधिक उत्कृष्ट एवं आनन्ददायक हो । उस दिन को अधिक मनोरंजक बनाने के लिए छुट्टी के दिन के रूप में मनोरंजक कायर्क्रम के साथ बिताने की व्यवस्था बन सके, तो वैसा भी करना चाहिए । विवाह दिन को केवल कमर्काण्ड की दृष्टि से ही नहीं, भावना-उल्लास और उत्साह की दृष्टि से भी विवाह दिन की अभिव्यक्तियों को नवीनीकरण के रूप में मना सकें, ऐसा प्रबन्ध करना चाहिए ।

यह तथ्य ध्यान में रखें- गृहस्थ एक प्रकार का प्रजातन्त्र है, जिसमें डिक्टेटरशाही की गुंजाइश नहीं, दोनों को एक-दूसरे को समझना, सहना और निबाहना होगा । दोनों में से जो हुक्म चलाना भर जानता है, अपना पूर्ण आज्ञनुवर्ती बनाना चाहता है, वह गृह-शान्ति में आग लगाता है । दो मनुष्य अलग-अलग प्रकृति के ही होते और रहते हैं, उनका पूणर्तया एक में घुल-मिल जाना सम्भव नहीं । जिनमें अधिक सामंजस्य और कम मतभेद दिखाई पड़ता हो, समझना चाहिए कि वे सद्गृहस्थ हैं । मतभेद और प्रकृति भेद का पूणर्तया मिट सकना तो कठिन है । सामान्य स्थिति में कुछ न कुछ विभेद बना ही रहता है, इसे जो लोग शान्ति और सहिष्णुता के साथ सहन कर लेते हैं, वे समन्ववादी व्यक्ति ही गृहस्थ का आनन्द ले पाते हैं । भूलना न चाहिए कि हर व्यक्ति अपना मान चाहता है । दूसरे का तिरस्कार कर उसे सुधारने की आशा नहीं की जा सकती । अपमान से चिढ़ा हुआ व्यक्ति भीतर ही भीतर क्षुब्ध रहता है । उसकी शक्तियाँ रचनात्मक दिशा में नहीं, विघटनात्मक दिशा में लगती हैं । पति या पतनी में से कोई भी गृह व्यवस्था के बारे में उपेक्षा दिखाने लगे, तो उसका परिणाम आथिर्क एवं भावनात्मक क्षेत्रों में विघटनात्मक ही होता है । दोनों के बीच यह समझौता रहना चाहिए कि यदि किसी कारणवश एक को क्रोध आ जाए, तो दूसरा तब तक चुप रहेगा, जब तक कि दूसरे का क्रोध शान्त न हो जाए । दोनों पक्षों का क्रोधपूवर्क उत्तर-प्रत्युत्तर अनिष्टकर परिणाम ही प्रस्तुत करता है । इन तथ्यों को दोनों ही ध्यान में रखें ।

व्रत धारण की आवश्यकता-

जिस प्रकार जन्मदिन के अवसर पर कोई बुराई छोड़ने और अच्छाई अपनाने के सम्बन्ध में प्रतिज्ञाएँ की जाती हैं, उसी तरह विवाह दिवस के उपलक्ष में पतिव्रत और पत्नीव्रत को परिपुष्ट करने वाले छोटे-छोटे नियमों को पालन करने की कम से कम एक-एक प्रतिज्ञा इस अवसर लेनी चाहिए । परस्पर 'आप या तुम' शब्द का उपयोग करना 'तू' का अशिष्ट एवं लघुता प्रकट करने वाला सम्बोधन न करना जैसी प्रतिज्ञाएँ तो आसानी से ली जा सकती है । पति द्वारा इस प्रकार की प्रतिज्ञाएँ ली जा सकती है ।
. कटुवचन या गाली आदि का प्रयोग न करना ।
. कोई दोष या भूल हो, तो उसे एकान्त में ही बताना-समझाना, बाहर के लोगों के सामने उसकी तनिक भी चर्चा न करना ।
. युवती-स्त्रियों के साथ अकेले में बात न करना ।
. पतनी पर सन्तानोत्पादन का कम से कम भार लादना ।
. उसे पढ़ाने के लिए कुछ नियमित व्यवस्था बनाना । ‍
. खर्च का बजट पत्नी की सलाह से बनाना और पैसे पर उसका प्रभुत्व रखना ।
. गृह व्यवस्था में पत्नी का हाथ बँटाना ।
. उसके सद्गुणों की समय-समय पर प्रशंसा करना ।
. बच्चों की देखभाल, साज-सँभाल, शिक्षा-दीक्षा पर समुचित ध्यान देकर पत्नी का काम सरल करना ।
१०. पर्दा का प्रतिबन्ध न लगाकर उसे अनुभवी-स्वावलम्बी होने की दिशा में बढ़ने देना ।
११. पतनी की आवश्यकताओं तथा सुविधाओं पर समुचित ध्यान देना आदि-आदि । पतनी द्वारा भी इसी प्रकार की प्रतिज्ञाएँ की जा सकती हैं, जैसे-
. छोटी-छोटी बातों पर कुढ़ने, झल्लाने या रूठने की आदत छोड़ना ।
. बच्चों से कटु शब्द कहना, गाली देना या मारना-पीटना बन्द करना ।
. सास, ननद, जिठानी आदि बड़ों को कटु शब्दों में उत्तर न देना ।
. हँसते-मुस्कराते रहने और सहन कर लेने की आदत डालना, परिश्रम से जी न चुराना, आलस्य छोड़ना । ५. साबुन, सुई, बुहारी इन तीनों को दूर न जाने देना, सफाई और मरम्मत की ओर पूरा ध्यान रखना ।
. उच्छृंखल फैशन बनाने में पैसा या समय तनिक भी खर्च न करना ।
. पति से छिपा कर कोई काम न करना ।
. अपनी शिक्षा योग्यता बढ़ाने के लिए नित्य कुछ समय निकालना ।
. पति को समाज सेवा एवं लोकहित के कार्यो में भाग लेने से रोकना नहीं, वरन् प्रोत्साहित करना ।
१०. स्वास्थ्य के नियमों का पालन करने में उपेक्षा न बरतना । ‍
११. घर में पूजा का वातावरणर बनाये रखना, भगवान् की पूजा, आरती और भोग का नित्य क्रम रखना । १२. पर्दा के बेकार बन्धन की उपेक्षा करना ।
१३. पति, सास आदि के नित्य चरण स्पर्श करना । आदि-आदि ।
हर दाम्पत्य जीवन की अपनी-अपनी समस्याएँ होती हैं । अपनी कमजोरियों, भूलों दुबर्लताओं और आवश्यकताओं को वे स्वयं अधिक अच्छी तरह समझते हैं, इसलिए उन्हें स्वयं ही यह सोचना चाहिए कि किन बुराइयों कमियों को उन्हें दूर करना है और किन अच्छाइयों को अभ्यास में लाना है । उपस्थित लोगों के सामने अपने संकल्प की घोषणा भी करनी चाहिए, ताकि उन्हें उसके पालने में लोक-लाज का ध्यान रहे, साथ ही जो उपस्थित हैं, उन्हें भी वैसी प्रतिज्ञाएँ करने के लिए प्रोत्साहन मिले ।

संस्कार क्रम-

विवाह दिवसोत्सव, विवाह संस्कार के संक्षिप्त संस्करण के रूप में मनाया जाता है । उसी कमर्काण्ड प्रक्रिया का सहारा लेकर उसे नीचे लिखे क्रम से कराया जाना चाहिए- मंगलाचरण - षट्कर्म कलश पूजन आदि कृत्य सम्पन्न करके संकल्प करें । देवशक्तियों और और सत्पुरुषों की साक्षी में संकल्प बोला जाए-...........नामाऽहं दाम्पत्यजीवनस्य पवित्रता-मयार्दयोः रक्षणाय त्रुटीनाञ्च प्रायश्चितकरणाय उज्ज्वलभविष्यद्धेतवे स्वोत्तरदायित्वपालनाय संकल्पमहं करिष्ये । संकल्प के बाद समय की सीमा का ध्यान रखते हुए देवपूजन, स्वस्तिवाचन आदि क्रम विस्तृत या संक्षिप्त रूप से कराया जाना चाहिए । सामान्य क्रम पूरा हो जाने पर विवाह पद्धति के मन्त्रों का प्रयोग करते हुए नीचे लिखे क्रम से निधार्रित विशेष उपचार कराये जाएँ-
. ग्रन्थिबन्धन ,
. पाणिग्रहण ,
. वर-वधू की प्रतिज्ञाएँ ,
. सप्तपदी
. आश्वास्तना ।
- आहुति- यज्ञ करें तो अग्निस्थापन , गायत्री मन्त्राहुति, प्रायश्चित्ताहुति करके पूणार्हुति करें । यदि यज्ञ करने की स्थिति न हो, तो दीपयज्ञ करें । पाँच दीप सजाकर रखें, गायत्री मन्त्र बोलते हुए उन्हें प्रकाशित करें । प्रायश्चित्ताहुति के प्रथम मन्त्र के साथ पति-पत्नी दीपों की ओर अपनी हथेलियाँ करें, जैसे घृत अवघ्राण के समय करते हैं ।
. एकीकरण- पति-पत्नी एक-एक दीपक उठाएँ । नीचे लिखे मन्त्र पाठ के साथ ज्योतियों को मिलाकर एक ज्योति करें । भावना करें कि हम अपने व्यक्तियों को एक दूसरे के साथ इसी प्रकार एकाकार करने का प्रयास करेंगे । दैवी अनुग्रह और स्वजनों के सद्भाव उसमें सहायक होंगे ।
ॐ समानी वऽआकृतिः समाना हृदयानि वः । समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति । - अथवर्० ६.६४.
. अन्त में दम्पती पुष्पोहार मन्त्र से एक दूसरे को माल्यापर्ण करें । फिर सभी लोग मंगल मन्त्र बोलते हुए पुष्पावृष्टि करें, शुभकामना -आशीर्वाद् दें ।
. विसजर्न , जयघोष एवं प्रसाद वितरण के साथ कायर्क्रम का समापन किया जाए ।